सिंहस्थ में 8 हजार वैराणी त्यागी साधु जलते कंडों को सिर पर रख कर करेंगे तप साधना
यह है साधु तप, भीषण गर्मी में जलते कंडों को सिर पर रख साधना, वैष्णव संप्रदाय के सिंहस्थ में 612 खालसे लेंगे भाग
सिंहस्थ दो मायनों में खास रहेगा। एक तो वर्ष 2004 की तुलना में इस बार वैष्णव संप्रदाय के करीब 640 खालसा शहर पहुंचेंगे। इनमें 20 हजार से ज्यादा साधु होंगे। दूसरा इस बार 8 हजार से अधिक वैरागी त्यागी साधु अंकपात मार्ग से लेकर मंगलनाथ क्षेत्र में अलग-अलग प्रकार की साधना करते नजर आएंगे। साधुओं की साधना शुरू भी हो गई है। मंगलनाथ क्षेत्र टाटंबरी बाबा के आश्रम के शिष्य साधना कर रहे हैं। श्री पंच रामानंदीय निर्मोही अणि अखाड़ा के श्रीमहंत राजेंद्रदास महाराज ने बताया कि सिंहस्थ के दौरान त्यागी साधुओं में कोई जल साधना में दिखेगा, तो कोई भीषण गर्मी में भस्म लपेट कर जलते कंडों को सिर पर रख साधना करते नजर आएगा।
कई साधनाएं
कई साधु अग्नि साधना, एक पैर पर खड़े रहकर साधना, कांटों पर लेटना-बैठना, एक हाथ ऊंचा कर साधना और विभिन्न प्रकार की योग साधना करते दिखेंगे। इन साधुओं को हठ साधक कहते हैं। ये जो सोच लेते हैं, उसी कार्य को साधना का रूप दे देते हैं। वैष्णव संप्रदाय के वैरागी साधु सुबह शैव साधुओं की तरह भस्म धारण करते हैं और जटा बढ़ाए रखते हंै। त्यागी अखाड़े के साधु तेज धूप में अग्नि प्रज्ज्वलित कर तपस्या करते हैं।
ऐसे होती है साधना
निर्वाणी अखाड़े के स्थानीय महंत दिग्विजयदास महाराज ने बताया कि वसंत पंचमी से त्यागी व महात्यागी संत धूनी रमाना शुरू करते हैं। साधक तीन वर्ष सप्तधूनी यानी सात कंडे रख साधना करते हैं। तीन वर्ष द्वादश धूनी, जिसमें 12 कंडे रख साधना की जाती है। इसके बाद तीन वर्ष 84 धूनी, जिसमें 84 कंडे आसपास रखकर साधना करते हैं। अंतिम खप्पर धूनी होती है, जिसमें सिर पर खप्पर में कंडे प्रज्ज्वलित कर भीषण गर्मी में साधना करते हैं। इसी प्रकार महात्यागी संत योग के अलग-अलग आसन में बैठकर तप साधना करते हैं।