Magh Mela 2023: कठोर तप के बाद बनती है महिला नागा साधू, आये जानें महिला नागा साधू की दिनचर्या!
रिपोर्ट: एल एन सिंह, उपासना डेस्क, प्रयागराज – प्रयागराज में महिलाएं भी नागा साधू बनती हैं. उन्हें भी इसके लिए कठोर परीक्षाएं देनी होती हैं लेकिन कुछ मायनों में पुरुष नागा साधुओं से महिला साधु अलग होती है, वो वेशभूषा धारण करती हैं। उनकी दिनचर्या भी बहुत कठिन होती है। जानिए कैसे कोई महिला नागा साधु बनती है और फिर वो कैसा जीवन जीती है।

पुरुषों की तरह ही महिला नागा साधुओं का जीवन भी पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित होता है और उनके दिन की शुरुआत और अंत दोनों ही पूजा-पाठ के साथ ही होता है। जब एक महिला नागा साधु बन जाती है, तो सारे ही साधु और साध्वियां उसे माता कहने लगती हैं। माई बाड़ा, वह अखाड़ा है जिनमें महिलाओं नागा साधु होती हैं, प्रयागराज में 2013 में हुए कुम्भ में माई बाड़ा को और विस्तृत रूप देकर दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा का नाम दिया गया।
पुरुषों की तरह ही महिला नागा साधुओं का जीवन भी पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित होता है और उनके दिन की शुरुआत और अंत दोनों ही पूजा-पाठ के साथ ही होता है। नागा एक पदवी होती है। साधुओं में वैष्णव, शैव और उदासीन तीनों ही सम्प्रदायों के अखाड़े नागा बनाते हैं। पुरुष साधुओं को सार्वजनिक तौर पर नग्न होने की अनुमति है, मगर महिला साधु ऐसा नहीं कर सकतीं।

नागा में बहुत से वस्त्रधारी और बहुत से दिगंबर (निर्वस्त्र) होते हैं। इसी तरह महिलाएं भी जब संन्यास में दीक्षा लेती हैं तो उन्हें भी नागा बनाया जाता है, लेकिन वे सभी वस्त्रधारी होती हैं। महिला नागा साधुओं को अपने मस्तक पर एक तिलक लगाना होता है। उन्हें एक ही कपड़ा पहनने की अनुमति होती है, जो गेरुए रंग का होता है.नागा एक पदवी होती है। नागा में बहुत से वस्त्रधारी और बहुत से दिगंबर (निर्वस्त्र) होते हैं। इसी तरह महिलाएं भी जब संन्यास में दीक्षा लेती हैं तो उन्हें भी नागा बनाया जाता है, लेकिन वे सभी वस्त्रधारी होती हैं।

महिला नागा साधू जो कपड़ा पहनती हैं, वो सिला हुआ नहीं होता है. इसे गंती कहते हैं. नागा साधु बनने से पहले महिला को 6 से 12 साल की अवधि तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। जब महिला ऐसा कर पाने में सफल हो जाती है। तब उसे उसके गुरु नागा साधु बनने की अनुमति देते हैं। नागा साधु बनाने से पहले महिला की पिछली जिंदगी के बारे में जानकारी हासिल की जाती है ताकि यह पता चल सके कि वह पूरी तरह से ईश्वर के प्रति समर्पित है या नहीं और कहीं उसके नागा साधु बनकर कठिन साधना को निभा पाएगी या नहीं। अखाड़े की महिला साधुओं को माई, अवधूतानी अथवा नागिन कहा जाता है. हालांकि इन माई या नागिनों को अखाड़े के प्रमुख पदों में से किसी पद पर नहीं चुना जाता है। हालांकि इन माई या नागिनों को अखाड़े के प्रमुख पदों में से किसी पद पर नहीं चुना जाता है.एक नागा साधु बनने के दौरान, एक महिला को यह साबित करना होता है कि वह पूरी तरह से ईश्वर के प्रति समर्पित हो चुकी है. और अब उसका सांसारिक खुशियों से कोई भी लगाव नहीं रह गया है।

सुबह नदी स्नान के बाद शुद्ध होकर महिला नागा संन्यासिनों की साधना शुरू होती है। अवधूतानी मां पूरा दिन भगवान का जाप करती हैं. अल सुबह उठकर शिव आराधना करती हैं तथा शाम में वह भगवान दत्तात्रेय की पूजा करती हैं। नागा साधु बनने से पहले, महिला साधु को अपना पिंडदान करना होता है और पिछली जिंदगी को पीछे छोड़ना होता है। महिलाओं को संन्यासी बनाने की प्रक्रिया अखाड़ों के सर्वोच्च पदाधिकारी आचार्य महामंडलेश्वर द्वारा पूरी कराई जाती है, महिला नागा साधु बनने के दौरान महिलाओं को पहले अपने बाल छिलवाने होते हैं, इसके बाद वे नदी में पवित्र स्नान करती हैं. यह उनके साधारण महिला से नागा साधु बनने की प्रक्रिया होती है।
इन महिलाओं को कुंभ के स्नान के दौरान नग्न स्नान भी नहीं करना होता है. वे स्नान के वक्त भी इस गेरुए वस्त्र को पहने रहती हैं।