आजादी के बाद मिली पौराणिक पहचान व संस्कृति को कुंभमेले से विश्वपटल पर पहुंचाएगा प्रयागराज

उपासना डेस्क,(अनिल कुमार श्रीवास्तव): हिन्दू धर्म में कुंभ व अर्धकुंभ मेला एक पावन पर्व के रूप में मनाया जाता है।देश के नामचीन तीर्थ स्थलों पर आस्था एवं विश्वास से भरे श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा भरी जुटान इन मेलो की ख्याति विश्व पटल पर पहुंचाती है।इसमे प्रयागराज तपोभूमि पर संगम किनारे लगने वाला यह मेला अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं।उत्तर प्रदेश सरकार की विशेष रुचि के चलते 2019 में लगने वाला यह अर्धकुंभ मेला अपनी भव्यता व दिव्यता के बल पर कुंभ मेले की छटा बिखेरेगा।

दीर्घावधिक कल्पवास, त्रिवेणी संगम पृथ्वी का केंद्र, सृष्टि सृजन निमित्त भगवान ब्रम्हा द्वारा प्रथम यज्ञ और तीर्थो में राजा की उपाधि इन महत्वपूर्ण कारणों से संगम नगरी प्रयागराज का कुंभमेला हिन्दुओ के लिए अतिविशिष्ठ है।यहां धार्मिक क्रियाकलापों के साथ साथ अखाड़ा के साधुसंतों द्वारा धार्मिक मंत्रोच्चार, धर्मध्वजा पूजन, पेशवाई आदि धार्मिक कार्य जहाँ एक तरफ मेले में चार चांद लगाते हैं वही स्नान, मनोहारी संगीत, देवस्थानों के दिव्यदर्शन भी हृदय को स्पर्श कर लेते हैं।यहां डुबकी लगाने वाला व्यक्ति अपने 10 जन्मों को सफल बना लेता है।

लगभग 50 दिनों तक हजारो हेक्टेयर भूमि में चलने वाले इस मेले में सरकार ने तीर्थ यात्रियों व श्रद्धालुओं की मूलभूत जरूरतों को समझते हुए सुविधाएं मुहैया कराने के प्रावधान किए हैं।स्वास्थ्य, यातायात के साथ साथ उजाले की भी व्यवस्था की गई है।इसबार लभगभ 6 लाख वाहनों के लिए 1193 हेक्टेयर भूमि में 120 पार्किंग स्थल बनाये जाएंगे।प्रयागराज को देश के 14 शहरों के हवाई मार्ग से जोड़ने के साथ महापुरुषों के नाम के द्वार लगाए जाएंगे।प्रयाग की धार्मिक, ऐतिहासिक व अन्य जानकारियों को डिजिटल पर्दे पर दिखाने के लिए संग्रहालय बनेगा वही कुम्भ गान के जरिये कुम्भ मेले की अध्यात्मिकता, व प्राचीनता को रखा जाएगा।शौचालयों की संख्या इस बार माघ मेले की तुलना में काफी अधिक होगी।खगोलीय घटनाओं के आधार पर यह मेला मकर संक्रांति से शुरू होता है।सूर्य और चन्द्र वृश्चिक, बृहष्पति मेष राशि मे प्रवेश करते हैं तो इस योग में कुम्भ स्नान मांगलिक माना गया है।क्योंकि धारणा है कि इस दिन उच्च लोको के द्वार खुलते हैं और इस पावन योग में स्नान करने से आत्मा को उच्च लोक की प्राप्ति होती हैं।सरकार के इस मेले को लेकर हो रहे प्रयासों से देखकर अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि इसबार प्रयाग में आयोजित होने वाला यह अर्धकुम्भ निश्चित ही महाकुंभ का रूप अख्तियार करेगा।

हाल में ही यूनेस्को ने कुंभ को विश्व की सांस्कृतिक धरोहरों में शामिल किया है, जिसके बाद सरकार इस मेले की भव्यता दुनिया को दिखाने में कोई कोर कसर नही रख छोड़ने की कवायद कर रही है।इस बार अखाड़ों से जुड़े कई सन्तो ने शरीर चिकित्सा विज्ञान के लिए देहदान की घोषणा कर नई मिसाल कायम की है।जनजन तक कुंभ मेले के लिए आमंत्रण पहुंचाने के लिए उत्तर प्रदेश के गांव गांव निमंत्रण भेजेंगे।साथ ही सभी राज्यो के मुख्यमंत्रियों को न्योता भेजेंगे।कुंभ मेले का नाम सुनकर मन मे पुनर्पहचान प्राप्त प्रयागराज का विचार अनायास हो कौंध जाता है।हालांकि आततायियों ने इस पवित्र संगम नगरी व हिन्दुओ के तीर्थराज का नाम बदल इलाहाबाद रखा और बहुत सम्भव है कि इसकी संस्कृति से छेड़छाड़ के प्रयास किये होंगे।लेकिन अगाध आस्था और धर्म समर्पण के चलते हिन्दुओ का विश्वास नही डिगा।इस पावन तपोभूमि पर यह परम्परागत कुम्भ मेला हर बार अपने धार्मिक क्रियाकलापों से समूचे विश्व पटल पर गुंजायमान होता रहा।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके पौराणिक व प्राचीन नाम को पुनः प्रयागराज कर दिया।और प्रयागराज में आजादी का पहला कुंभमेला होगा।उम्मीद है कि आशा से अधिक जनसैलाब भक्तिभाव से विह्वल होकर दोगुने उत्साह के साथ पवित्र संगम में डुबकी लगाएगा।

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