धर्म की नगरी इलाहाबाद स्टेशन का कायाकल्प

पावन तपस्थली तीर्थराज इलाहाबाद में आगामी अर्धकुम्भ मेले को ऐतिहासिक बनाने के लिए रचनात्मक तैयारियां जोरों पर हैं। जहाँ एक तरफ सरकारी अमला स्वच्छता और सौंदर्यीकरण पर जुट गया वही दूसरी तरफ क्षेत्रवासी शासन प्रशासन का साथ देने में विशेष अभिरुचि दिखा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि स्वक्षता की शुरुआत यहाँ पावन नदियों से कर दी गयी थी इसमें शासन प्रशासन के साथ यहां के निवासियों ने रचनात्मक तरीके से बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। पवित्र नदियों के साथ शहर साफ करने में भी रूचि दिखाई गयी और वातावरण को सुथरा रखने के प्रति संकल्पित हुए।नमामि गंगे नारे के साथ सभी नदियों को साफ रखने का संकल्प लिया गया था।

मान्यता है कि प्रयाग नाम से प्रसिद्ध इस पावन नगरी के अधिष्ठाता स्वयं भगवान विष्णु जी हैं और नाम में निहित्त सृष्टि का पहला यज्ञ यहाँ ब्रम्हा जी ने किया था जिसको शाब्दिक अर्थ के तौर पर विच्छेद करके प्र(प्रथम)याग(यज्ञ) देखा जाता है।

गंगा, जमुना, सरस्वती(अदृश्य) पावन नदियों के तट पर बसे तीर्थराज के रेलवे स्टेशन पर रेल विभाग ने भी सफाई और सुंदरीकरण में विशेष सक्रियता दिखाई है। इलाहाबाद मंडल के अधीक्षक ने यहां के पड़ाव को साफ रखने के कड़ाई से निर्देश दिए हैं और साथ ही देश की प्राचीनतम कला को महत्व देते हुए भित्तिचित्र कला द्वारा इलाहाबाद स्टेशन को सुंदर रूप देने का फैसला लिया। प्रागैतिहासिक युग में पहले इस कला द्वारा मिटटी के बर्तन बनाए जाते थे।बाद में दीवारों पर बनने लगे। गत माह से रेलविभाग ने भारतीय संस्कृति की इस प्राचीनतम कला के निपुण कलाकारो से रेलवे स्टेशन के मुख्य पहचान बोर्डो पर बेहद सुंदर तरीके से रचनाएँ करवाई जी देखते ही बनती हैं। देवी देवताओं की मनभावन पेंटिंग, नदियों की, राजा हर्षवर्धन की कलात्मक पेंटिंग, साधू संतो को दर्शाते हुए इन सब कलाओ की आभा तो देखते ही बनती है।

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