करह धाम (Karah Dham), मुरेना

मुरैना जिला मुख्यालय से पन्द्रह किलोमीटर दूर स्थित सिध्द महात्माओं की तपोस्थली ”करह” में पहले जहां हिंसक पशुओं का गर्जन लोगों को भयभीत किये रहता था, अब वहां भक्ति की अविरल धारा बह रही है और श्रध्दालुजनों का आना-जाना भी निर्भयता के साथ होने लगा है । पिछले पचास वर्ष से यहां लगातार राम नाम संकीर्तन चल रहा है । यह इसी का पुण्य प्रताप है कि कल का घनघोर जंगल आज प्रसिध्द ” धाम” बन गया है ।

कहा जाता है कि ”करह” तीन सिध्दों के तप का जीवंत प्रतीक है । धनेले के महात्मा चेतनदास के एक शिष्य रामदास थे, जिन्हें ये रमुआ कह कर पुकारते थे । वे अपने रोजमर्रा के काम के साथ गुप्त साधना भी करते थे । एक बार उन्होंने आग को हाथों से उठा लिया । महात्मा चेतनदास की आज्ञा से इन्होंने करह की झाड़ी में आकर तपस्या करना शुरू कर दिया । मान्यता है कि यहां पहले से ही एक सिध्द बाबा रहा करते थे, जो ” तप ” के लिए आने वाले संत-महात्माओं की कठिन परीक्षायें लिया करते थे । ” रमुआ ” की भी इन सिध्द बाबा ने परीक्षा ली और इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद रमुआ ”सिध्द” रामदास कहलाने लगे । उन्होंने यहां बरगद का पेड़ लगाया ,जो आज भी इनकी स्मृति को तरोताजा बनाये हुए है । रामजानकी जी के मंदिर की भी इन्होंने स्थापना कराई, जिसकी प्रतिमा बाद में इनके शिष्य जानकीदास धनेला लेकर चले गये , जो आज भी वहां स्थापित होकर नित्य पूजित हैं । यह भी माना जाता है कि सिध्द रामदास का ” कढाह” सदैव अग्नि पर चढ़ा रहता था और हर आने-जाने वाले श्रृध्दालु को दूध का प्रसाद मिलता था । यही कढ़ाह बाद में कड़ाह हुआ और अन्तराल में ” करह ” नाम से विख्यात हुआ ।

” करह ” को ” धाम ” बनाने में पटिया वाले बाबा रामरतन दास महाराज अग्रणी हैं । सांक नदी के किनारे स्थित जरारा ग्राम के गुर्जर परिवार में जन्में रतनसिंह का प्रारंभ से ही धर्म के प्रति झुकाव था । बचपन में ही पिता चतुर्भुज सिंह का निधन हो जाने से इनका पालन पोषण मां विजय कुंवरि ने किया । रतन सिंह का मन घर द्वार में नहीं था । नूराबाद के सीताराम मंदिर में रहने वाले तपसी बाबा के सम्पर्क में आने पर इनका ”रामानुराग ” बढ़ गया और उन्हीं के आदेश पर ये करह में रामजानकी मंदिर के सामने पड़ी पटिया पर आकर तपस्या करने लगे । सिध्द बाबा कभी सर्प और कभी सिंह के रूप में आकर इन के साथ लीला किया करते थे । वर्षों पटिया पर तप करने के कारण ये ”पटिया वाले बाबा” के नाम से प्रसिध्द हुए । इस क्षेत्र के लोग किसी भी काम की शुरूआत पटिया वाले बाबा के जयकारे से ही करते हैं । इनके एक शिष्य बाबा लखनदास थे, जो परमहंस वृति के थे और बाद में करह से टेकरी चले गये ।

पटिया वाले महाराज के दूसरे शिष्य मोहन सिंह थे, जो रामदास महाराज के नाम से करह के तीसरे सिध्द के रूप में प्रसिध्द हुए । मोहन सिंह का जन्म ग्वालियर जिले के छीमका में हुआ । इनके पिता का नाम मुरली सिंह था और माता लक्ष्मी बाई थी। बचपन में मां का निधन हो जाने से पिता को इनके पालन पोषण में परेशानी आने लगी । पुलिस की नौकरी पर जाते समय वे इन्हें आंतरी के बाबा धरमदास जी के पास छोड़कर चले जाते थे।

बचपन में ही इन्हें हनुमान चालीसा और सुंदर कांड कंठस्थ था । बाबा धरमदास के सानिध्य से इनका रामानुराग बढ़ा । मोहनसिंह ने नूराबाद और मुरैना की कचहरी में नौकरी भी की, लेकिन वे नौकरी से मिलने वाला वेतन दीन दुखियों और साधुओं की सेवा में लगा देते थे । तपसी बाबा का भी इन पर विशेष स्नेह रहा । कहते हैं कि हरिध्दार के कुम्भ में इन्हें नारद जी ने दर्शन दिए और उनकी प्रेरणा से सन्यासी हो गये । ईश्वरीय प्रेरणा से करह आकर बाबा रामरतन दास जी का शिष्यत्व गृहण कर लिया और नाम मिला ” रामदास” । बाबा रामरतन दास की गुरू आज्ञा पर बाबा रामदास ने बड़ोखर हनुमान जी की तीन वर्ष कठोर साधना की और हनुमान जी का साक्षात्कार किया । बड़े महाराज के आदेश पर इन्होंने श्री विजय राघव सरकार की स्थापना कराई और पहली बार करह धाम पर सम्बत 2001 में विशाल यज्ञ कराया , जिसमें सिध्द संत श्री हरिबाबा, उडिया बाबा, आदि विभूतियों सहित एक हजार विद्वान संत महात्माओं ने भाग लिया । इस यज्ञ पर उस समय ढाई लाख रूपये का खर्च आया और यहीं से ” रामायणी बाबा श्री रामदास जी करहवाले प्रसिध्द हो गये । यह भी मान्यता है कि यज्ञ में घी कम पड़ने पर बाबा के आदेश पर परिसर में स्थित सरयू कुंड के जल को कढाई में डाल कर मालपूये सेके गये और बाद में इस जल की पूर्ति के एवज में उतना ही घी सरयू कुंड में डाला गया । ऐसा भी माना जाता है कि इसके पानी में कुत्ता काटे के इलाज की तासीर है । पटिया बाले बाबा रामरतन दास महाराज की चरण पादुकाओं का नियमित पूजन यहां होता है और श्रृध्दालु जीवन की सफलता के लिए पादुका का चरणामृत लेते हैं तथा मनोकामना की पूर्ति के लिए धाम परिसर की परिक्रमा करते हैं । बाबा रामदास द्वारा प्रारंभ कराया गया रामकीर्तन एव रामकथा का अविरल क्रम 60 वर्षों से लगातार करह धाम पर चल रहा है । इन्होंने करह धाम पर मां भगवती के भव्य भवन के अलावा, तपो भूमि मंदिर, यज्ञ शाला, संत निवास, संकीर्तन भवन, गौशाला आदि का निर्माण कराया । इसके अलावा हनुमान गढ़ी का भव्य मंदिर एवं टेकरी पर दिव्यधाम श्री एकादश मुंखी हनुमान जी और मारकण्डेश्वर महादेव की प्राण प्रतिष्ठा कराई और भव्य मंदिर का निर्माणकराया । धनेला ग्राम के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्वार एवं मीरा नगर मुरार ग्वालियर में रामजानकी औरदेवी मां की प्राणप्रतिष्ठा भी कराई ।

” करह धाम ‘ की गौशाला में लगभग पांचसौ गायों की सेवा का क्रम आज भी जारी है । साथ ही अशक्त रोगियों की चिकित्साहेतु सुविधा युक्त अस्पताल है । 26 मार्च 2004 को परम पूज्य महाराज श्री रामदास जी के साकेतबास उपरांत श्री विजय राघव सरकार ट्रस्ट की अध्यक्ष अनन्त श्री किशनदासी बाई महाराज है ।

प्रतिवर्ष माघ महीना की पूर्णिमा से फाल्गुन माह की नवमीं तक यहां ”सियपिय मिलन मेला” लगता है।

Comments

comments

error: Content is protected !!
Open chat
Hi, Welcome to Upasana TV
Hi, May I help You