प्रयागराज नाम पौराणिकता के तहत हिंदुस्तान की संस्कृति की पुनर्स्थापना है
उपासना डेस्क, अनिल कुमार श्रीवास्तव: मुगल शासक द्वारा बदले पौराणिक नाम को बदल कर भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना निश्चित ही मौजूदा सरकार का स्वागतयोग्य सराहनीय कदम है।उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अपने वादे को पूरा करते हुए लिए गए इस ऐतिहासिक फैसले से हिंदुस्तान की संस्कृति को बढ़ावा देने वाले वर्ग में खुशी की लहर है।
मालूम हो कि 1526 में मुगलो के अधीन होने के बाद तीर्थराज प्रयाग का नाम बदल कर तत्कालीन शासक अकबर ने अल्लाहाबाद कर दिया था।सन्धि विच्छेद के हिसाब से अल्लाह+बाद का मतलब अल्लाह का बसाया हुआ शहर, जो धीरे धीरे आम बोलचाल से इलाहाबाद पड़ गया।लेकिन पुराणों के मुताबिक यह प्रयाग था और इसे सभी तीर्थों का राजा का दर्जा दिया गया है।
प्रथम यज्ञ का गौरव प्राप्त इस शहर का नाम ही प्रयाग था(प्र यज्ञ)। मुगलो के बाद अंग्रेज फिर भारत की आजादी…क्रमशः तमाम घटना क्रम हुए लेकिन इस संगम नगरी की संस्कृति की किसी ने सुध नही ली। आजाद भारत मे कई बार शहर का नाम बदलने के स्वर मुखर हुए लेकिन तत्कालीन सरकारों ने उसे तबज्जोह नही दिया।इस बार भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश का दायित्व संभालने के साथ ही मार्च 2017 में यहा की जनता से ये वायदा किया था की इलाहाबाद की खोई पौराणिक पहचान को पुनर्स्थापित कर देंगे। अपने इस वादे पर खरा उतरते हुए बीते मंगलवार को उप्र कैबिनेट ने इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज करने की मंजूरी दे दी।
तमाम सांस्कृतिक धरोहरों से सम्पन्न, संगम नगरी, गंगा जमुनी तहजीब से भरी यह प्रसिद्ध धार्मिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक नगरी आज भी अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। कुंभ मेले में तो इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। प्रसासन व स्थानीय लोगो के बेहतरीन समन्वय से सुदूर क्षेत्रो से आये लाखो श्रद्धालु धार्मिक अनुष्ठानों को सम्पन्न कर खुशी खुशी इस पावन भूमि को धन्यवाद देते हुए जाते हैं। उच्च न्यायालय, माध्यमिक शिक्षा संघ, रेलवे आदि से कानून, शिक्षा आदि विभागों में इसकी अलग पहचान है। अभिनय,लेखन, राजनीति, शिक्षा, धर्म, समाजसेवा आदि क्षेत्रों में इस पावन भूमि ने अद्वितीय प्रतिभाओ को जन्मा है।इस शहर को मिली पौराणिक पुनर्पहचान से संस्कृति व धर्म मे आस्था रखने वालों में खुशी की लहर है।
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