कटासराज मंदिर, पाकिस्तान: जहां गिरे थे भगवान शिव के आंसू
बंटवारे के चलते पाकिस्तान स्थित तीर्थ स्थल कटासराज को आज चाहे भुला दिया गया है, लेकिन किसी जमाने में अंग्रेज भी इसके कायल थे। यहां लगने वाला कुंभ का मेला उन्हें खींच लाता था। इसमें हर धर्म-जाति और कल्चर को देखना उन्हें लुभाता था। यह बात लोगों से शेयर की है भारतीय शोधकर्ता अखिलेश झा ने। उन्होंने अपनी किताब ‘द ब्रिटिश अकाउंट ऑफ कटासराज’ में ब्रिटिश इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के हवाले से बताया है कि यहां कुंभ बैसाखी पर लगता था। अखिलेश झा 1996 बैच के सिविल सेवा अधिकारी हैं और संप्रतिनियुक्ति पर राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन संस्थान फरीदाबाद में प्रोफेसर हैं। उन्होंने संस्कृति और इतिहास से जुड़े विषयों पर 17 किबातें लिखी हैं।
महाराजा रणजीत सिंह के शासन में अंग्रेज इसके बारे में अक्सर अपने जासूसों, डॉक्टरों और सैन्य अफसरों से बात करते रहते थे। उस दौरान कटासराज यहां आने का अच्छा बहाना होता था। महाराजा रणजीत सिंह के दौर में ब्रिटिश ज्यूलॉजिस्ट एंड्रर्यू फ्लेमिंग यहां आए और अपनी सर्वे रिपोर्ट में लिखा है कि उसने कटासराज में बैसाखी के मौके पर कुंभ सी भीड़ देखी।
कैप्टन जेम्सएबोट ने 12 अप्रैल 1848 के बैसाखी मेले में कटास की यात्रा की और उसने वहां जो कुछ देखा, वह उसने उससे पहले कभी नहीं देखा था। वह लिखता है कि उसने अपने जीवन में ऐसा मेला नहीं देखा। उसके अनुसार कटास सरोवर में कहीं भी तिल रखने की जगह नहीं थी। अरलेस्टिन भी अपने यात्रा वृतांत में ऐसा ही वर्णन करता है। कटास उन्नीसवीं सदी में पंजाब के झेलम जिले में पड़ता था और वहां सभी धर्मों के लोगों में काफी प्रेम और सद्भाव था। किताब के मुताबिक महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य के आखिरी दौर में ही इस तीर्थ का भी डाउनफॉल होने लगा था। एलेक्जेंडर कनिंघम की तरफ से रणजीत सिंह के शासनकाल में जम्मू के गवर्नर गुलाब सिंह की ओर किए गए इशारे का हवाला देते हुए वह कहते हैं कि कटास के सतघरा मंदिर का नुकसान जितना प्राकृतिक रूप से नहीं हुआ उतना वहां पर अंधाधुंध मरम्मत से हुआ।
यह पाकिस्तान के जिला चकवाल स्थित हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल है। बताया जाता है कि पांडवों के वनवास के दौरान यहीं पर युधिष्ठिर तथा शिवरूप धारी यक्ष का संवाद हुआ था। एक अन्य कथा के मुताबिक भगवान शिव के नेत्रों से दो बूंद आंसू टपके थे, एक पुष्कर राजस्थान में तथा दूसरा कटासराज में गिरा था। इस तीर्थ स्थल पर साल में दो बार शिवरात्रि तथा महाशिवरात्रि पर मेला लगता है।
साभार: इंसिस्ट पोस्ट