सिद्धनाथ मंदिर: इस शिव मंदिर को मुस्लिम भी मानते हैं शुभ

कानपुर का जाजमऊ इलाका चमड़ा उद्योग के लिए मशहूर है। इलाके की दूसरी पहचान इससे भी है कि इस मुस्लिम बहुल क्षेत्र में भोलेनाथ का प्राचीन सिद्धनाथ मंदिर स्थापित है। खास बात ये है कि यहां रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग इस मंदिर को इलाके के लिए शुभ मानते हैं। उनका मानना है कि इससे उनके परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। भले ही वे मंदिर में पूजा करने नहीं जाते हैं, लेकिन वे उन्हें बाबा के रूप में पूजते हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, त्रेतायुग में कानपुर के गंगा नदी के किनारे बसे जाजमऊ इलाके को जयाद नाम के राजा ने बसाया था। यहां स्थापित सिद्धनाथ मंदिर का खास महत्व है। कहा जाता है कि राजा जयाद के पास एक हजार गायें थीं। इसमें से वो सिर्फ उस एक गाय का दूध पीता था, जिसके पांच थन थे। जब ये गाय रोजाना एक टीले (किले से करीब दो किमी दूर, जहां आज ये मंदिर मौजूद है) पर जाती थी तो उसके थन से खुद-ब-खुद दूध गिरने लगता था।

100 यज्ञ पूरे होने पर कहलाता छोटा काशी
जब राजा को इस बात का पता चला तो उन्होंने टीले की खुदाई करवाई। यहां जमीन के काफी नीचे एक शिवलिंग मिला। इसके बाद राजा ने यहां पर यज्ञ कराने पर विचार-विमर्श किया। कहा जाता है कि राजा को एक स्वप्न आया। उन्होंने देखा कि यदि यहां पर 100 यज्ञ पूरे हो जाएंगे तो ये जगह भी छोटी काशी के रूप में मशहूर हो जाएगी। राजा ने पूरे विधि-विधान से इस टीले पर यज्ञ शुरू किया।

इंद्रदेव ने खंडित किया था यज्ञ
माना जाता है कि राजा जयाद ने 99 यज्ञ तो पूरे कर लिए लेकिन 100वें यज्ञ के दौरान उसे खंडित करने के लिए इंद्रदेव कौवे का रूप धारण करके यहां पहुंच गए। उन्होंने हवन कुंड में हड्डी डाल दी, जिस वजह से राजा का यज्ञ पूरा नहीं हो सका। इसके बाद राजा ने भगवान शिव की अराधना की। इससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन दिए। उन्होंने कहा कि ये इलाका काशी के रूप में तो नहीं जाना जाएगा, लेकिन यहां एक लिंग स्थापित होगा, जिसे सिद्धेश्वर के नाम से जाना जाएगा। हालांकि, इतिहास में ये वर्णित नहीं है कि इस मंदिर की स्थापना कब और कैसे हुई।

इलाके में हैं 90 फीसदी मुस्लिम
जाजमऊ इलाका टेनरियों के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र की आबादी करीब छह लाख है, जिसमें 90 फीसदी मुस्लिम लोग रहते हैं। उनका कहना है कि इस इलाके में बसे भोलेनाथ उनके लिए शुभ हैं। जाजमऊ टेनरी एसोसिएशन के अध्यक्ष हाजी अबरार मानते हैं कि यहां पर मकसूद बाबा की मजार और सिद्धनाथ मंदिर दोनों एक साथ मौजूद हैं। यहां रहने वाले मुस्लिम दोनों को ही अपना बाबा मानते हैं। यही वजह है कि आज तक इस मोहल्ले में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच झगड़ा नहीं हुआ है। इतना ही नहीं, हाजी अबरार खुद सावन के महीने में शिवलिंग के दर्शन करते हैं।

क्या कहते हैं स्थानीय लोग
चमड़े का कारोबार करने वाले नफीस और अरशद बताते हैं कि सिद्धनाथ बाबा का आशीर्वाद हमेशा उनके साथ रहता है। इस इलाके में दोनों धर्मों के बीच हमेशा शांति बनी रहती है। यहां हिंदू और मुसलमान के बीच आज तक कोई तनाव हुआ है। यही नहीं, वे सिद्धनाथ बाबा को जाजमऊ का कोतवाल भी मानते हैं।

दर्शन मात्र से पूरी होती है मुराद
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि सावन के महीने में यहां विशाल मेला लगता है। शिवजी के दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त भोलेनाथ को दूध, फूल और बेलपत्र चढ़ाते हैं। सावन के महीने में यहां दूर-दूर से साधु-संत आते हैं और भिक्षा मांगते हैं। मंदिर में पहुंचे एक भक्त मनोज ने बताया कि वे पिछले 25 साल से यहां आ रहे हैं। उनकी यहां मांगी गई हर मुराद पूरी हुई है।

साभार: भास्कर

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