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कर्मफल भोगने के लिए जीव जन्म लेता है किंतु जीव का उद्धार करने के लिए भगवान अवतार लेते है – दण्डी स्वामी श्री प्रज्ञानानंद सरस्वती जी

उपासना डेस्क, सिवनी – उक्ताशय के उपदेश आचार्य महामंडलेश्वर दण्डी स्वामी श्री प्रज्ञानानंद सरस्वती जी महाराज ने हाउसिंग बोर्ड कालोनी में कथा के दौरान उपस्थित जनसमुदाय को दिए। द्विपीठाधीश्वर ब्रह्मीभूत जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के परम स्नेही शिष्य श्री प्रज्ञानानंद जी कहा कि श्रीमद भागवत कल्पवृक्ष है, चिन्तामणि है, कामधेनु है, जिसका सानिध्य पाकर मनुष्य की सारी इच्छाये पूर्ण होती है। भागवत में प्रकाशन भी है पोषण भी है जिसके लिए इसके पास जाना पड़ेगा, इसके चिन्तन-ममन को साधन बनाना पड़ेगा।

शुकदेव जी महाराज ने राजा परीक्षित को भागवत कथा ही नही सुनाई, बल्कि भावरूप से भगवान की लीलाओं का प्रत्यक्ष दर्शन कराया था। भागवत कथा में प्रेम पूरित होकर डूबने का अद्‌भुत आनन्द है। स्वामी जी कहा कि अवतरण और जन्म में अंतर होता है भगवान का अवतार होता है जबकि जीव का जन्म होता है जीव अपने कर्मफल को भोगने के लिए संसार में आता है किन्तु भगवान के अवतार लेते हैं वह अपनी इच्छा से हर कहीं रह सकते है। वे अपने माता पिता चुनते है परमात्मा अपनी इच्छा से भवकूप में पडे जीव का उद्धार करने के लिए अवतार लेते हैं।

हर्ष का उल्टा विषाद है, सुख का उल्टा दुख है, किन्तु आनन्द का उल्टा नहीं है भगवान आनन्दस्वरूप हैं, जीवन रूपी गाड़ी को दो नन्दी चलाते हैं, शास्त्रों में नन्दी को धर्म का स्वरूप माना गया है। जीवन रूपी गाड़ी के दो नन्दी है जिसमे एक लौकिक धर्म और दूसरा पारलौकिक धर्म। श्री कृष्ण ने बालरूप में ही शकयसूर राक्षस जो बेलगाड़ी मे बैठा था उसे लात मारकर गिराकर ही वध कर दिया था,यह गाड़ी बिना बैल की थी अर्थात जिस जीवनगाड़ी में लौकिकधर्म और पारलौकिकधर्म न उसे तो लात मार देना चाहिए। सौ काम छोड़कर भोजन करना चाहिए।

अन्न ब्रह्मा है इसका अनादर नही करना चाहिए थाली में भोजन जूठन छोड़ना अपराध है भोजन करते उस भोजनदाता भगवान को भूल जाना अपराध है, इसीलिए भगवान को भोग लगाकर भोजन को प्रसाद रूप में ग्रहण करना चाहिए।

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