छठ पूजा का इतिहास और महत्व

छठ पर्व या छठ कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। प्रायः हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलंवी भी मनाते देखे गए हैं। धीरे धीरे यह त्यौहार प्रवासी भारतीयों के साथ साथ विश्वभर मे प्रचलित व प्रसिद्ध हो गया है। छठ पर्व की शुरूआत कहां से हुई, कब हुई और क्यों हुई इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं।

छठ पूजा का स्वरूप

चार दिन तक मनाई जाने वाली छठ पूजा में महिलाएं लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। जिसमें वह पानी तक नहीं पीती।

नहाय खाय :-
पूजा का पहले दिन को ‘नहाय-खाय’ कहा जाता है इस दिन सुबह सबसे पहले पूरे घर को साफ किया जाता है। इसके बाद स्नान करके साफ-सफाई और पवित्र रूप से बने शाकाहारी खाने को खाकर व्रत शुरू होता है। घर के अन्य लोग व्रती के खाना खाने के बाद ही खाते हैं। खाने में कद्दू-दाल और चावल बनाकर ग्रहण किया जाता है।

लोहंडा और खरना :-
दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल की पंचमी को व्रती पूरे दिन व्रत रखने के बाद शाम के समय भोजन करती है। इसे खरना कहते हैं। आस-पास के लोगों को भी इस दिन प्रसाद खाने के लिए बुलाया जाता है, जिसमें गन्ने के रस में बने चावल की खीर, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। छठ व्रत में नमक का प्रयोग नहीं किया जाता। छठ पूजा में साफ सफाई का विशेष महत्व होता है।

संध्या अर्घ्य :-
छठें दिन प्रसाद में ठेकुआ, चावल के लड्डू बनाया जाता है। इसके अलावा चढ़ावे के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में रखकर लोगों को खिलाया जाता है। सांयकाल के समय पूरे विधि पूर्वक परिवार और पास के लोगों के साथ घाट जाकर अर्घ्य दी जाती है। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य देकर छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा होती है।

उगते सूरज को अर्घ्य :-
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल की सप्तमी को सुबह उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन भी वही प्रकिया दोबारा की जाती है जो पिछली शाम को की गई थी।

छठ पूजा से जुड़ी कुछ कहानियों

राजा प्रियंवद की कहानी:
छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियवंद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा प्रियंवद से कहा कि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं और इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा प्रियंवद से उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा। जिसके बाद राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तभी से छठ पूजा पूत्रोंं की दीर्घ आयु के लिए मनायी जाती है।

भगवान राम और लंका विजय से जुड़ी कहानी: छठ पूजा से जुड़ी एक अन्य कहानी प्रचलित है जिसके मुताबिक विजयादशमी के दिन लंकापति रावण के वध के बाद दिवाली के दिन भगवान राम अयोध्या पहुंचे। रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान राम ने ऋषि-मुनियों की सलाह से राजसूर्य यज्ञ किया। इस यज्ञ के लिए अयोध्या में मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने की सलाह दी। इसके बाद मां सीता मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। इसके बाद से ही यह पर्व मनाया जाता है।

योद्धा कर्ण और माता कुंती से जुड़ी कहानी:
एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। जिसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।

बिहार और उत्तर भारत में है विशेष महत्व: छठ पूजा उत्तर भारत खासकर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस दौरान सूर्य भगवान को अर्घ्य देकर उपासना की जाती है। कार्तिक महीने की चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक मनाया जाने वाला ये त्यौहार चार दिनों तक चलता है। इस बार छठ पूजा की तिथि चार नवंबर से लेकर सात नवंबर तक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। इस दिन सूर्य की भी पूजा की जाती है। माना जाता है जो व्यक्ति छठ माता की इन दिनों पूजा करता है छठ माता उनकी संतानों की रक्षा करती हैं।

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