खेमा माई मंदिर, प्रयाग के सुप्रसिद्ध चमत्कारिक सिद्धपीठ देवी मंदिर

प्रस्तुति / अजामिल
सभी चित्र / विकास चौहान

यज्ञतीर्थ प्रयाग में देवी मंदिर संख्या में बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन जो है उनमें से अधिकतर सिद्धपीठ है और उनकी चर्चा पुराणों में देवी देवताओं के मुख से हुई है। पुराने प्रयाग में घनी बस्तियों वाला एक मोहल्ला है खुशहाल पर्वत । इस मोहल्ले को खुशहाल पर्वत क्यों कहा गया, इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती। घनी बस्ती वाला यह मोहल्ला पतली पतली गलियों के जाल में फंसा हुआ है । यहां के लोग ईश्वर में गहरी आस्था रखने वाले लोग हैं । लगभग डेढ़ सौ बरस पहले खेमा माई मंदिर एक छोटे से चबूतरे पर अवस्थित था। खेमा माई यहीं पर क्षेत्र के तमाम लोगों के द्वारा प्राण प्रतिष्ठित की गई थी ।

पूजन-अर्चन के बाद खेमा माई ऊर्जा का ऐसा केंद्र बन गई जहां पहुंचकर सिर्फ माई के चरणों में मस्तक झुका देने वाले की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होने लगी । कहा जाता है कि महामना मदन मोहन मालवीय जितने दिन इलाहाबाद में ही रहते थे प्रतिदिन खेमा माई के दर्शन के लिए भारती भवन से नंगे पैर मां के दर्शन के लिए आते थे । हिंदी भक्त पुरुषोत्तम दास टंडन भी प्रतिदिन खेमा माई सिद्धपीठ आया करते थे । आज खेमा माई मंदिर अपनी छोटी सी जगह में आस्था के सौंदर्य से जगमगा रहा है।

मां की उपस्थिति की खुशबू वहां पर बनी रहती है । खेमा बहुत सुंदर है और भक्त उनकी ओर देखते ही रह जाते हैं । खेमा माई के सिद्धपीठ पर कोई शर्त लागू नही होतीं सिर्फ आप के प्रेम और आस्था के। माई भक्तों के आस्था और प्रेम से ही भक्त को समर्पित हो जाती हैं । न जाने कितनी दूर दूर से लोग खेमा माई के दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए माई से प्रार्थना करते हैं । मंदिर का परिसर बहुत छोटा है। इसके बावजूद बहुत सी महिलाएं माई के पास प्रतिदिन जाती है और उनका सानिध्य सुख प्राप्त करती है । प्रयाग का यह पुराना देवी सिद्धपीठ सब तरह से दर्शन के योग्य है। इस सिद्धपीठ में नवरात्र के 9 दिन देवी दर्शन के लिए आने वालों का तांता लगा रहता है । खेमा माई के दर्शन मात्र से दुख दूर हो जाते है।

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