कांवड़ यात्रा: आस्था और समर्पण का महापर्व – (सावन 2025 विशेष)
उपासना डेस्क, नॉएडा : सावन का महीना आते ही, भगवान शिव की भक्ति में लीन होकर, गेरुआ वस्त्र धारण किए भक्तों का एक अद्भुत सैलाब सड़कों पर उमड़ पड़ता है। ये भोले के भक्त ‘बम बम भोले’ का जयकारा लगाते हुए, सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं, अपने कंधों पर कांवड़ लिए हुए। लेकिन ये कांवड़ यात्रा आखिर है क्या, और इसका इतना महत्व क्यों है? आइए जानते हैं।
कांवड़ यात्रा दरअसल, भगवान शिव को समर्पित एक वार्षिक तीर्थयात्रा है। इसमें श्रद्धालु, जिन्हें कांवड़िये कहते हैं, पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना या अन्य पवित्र सरोवरों से जल भरकर, उस जल को कांवड़ में रखकर अपने कंधों पर उठाते हैं। फिर इस जल को लेकर, पैदल चलते हुए, अपने गंतव्य पर स्थित शिव मंदिरों में शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।
ये कांवड़ बांस या लकड़ी से बनी एक विशेष प्रकार की बहंगी होती है, जिसके दोनों सिरों पर जलपात्र बंधे होते हैं। इन जलपात्रों में पवित्र जल भरा जाता है। कांवड़िये इस कांवड़ को अपने कंधों पर उठाकर चलते हैं। यात्रा के दौरान, कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता। अगर रुकना भी हो, तो उसे किसी ऊँचे स्थान, जैसे पेड़ की डाल पर टांग दिया जाता है।
मुख्य रूप से, कांवड़िये हरिद्वार, गंगोत्री, ऋषिकेश, सुल्तानगंज जैसे पवित्र स्थानों से गंगाजल भरते हैं। ये यात्रा मुख्य रूप से सावन के महीने में होती है, जो भगवान शिव का अत्यंत प्रिय महीना माना जाता है।
कब शुरू होगी कांवड़ यात्रा?
पंचांग के अनुसार, सावन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 11 जुलाई को देर रात 02 बजकर 06 मिनट से होगी। ऐसे में इसी दिन से सावन के महीने और कांवड़ यात्रा की शुरुआत होगी। वहीं, इस यात्रा का समापन 23 जुलाई 2025 को सावन शिवरात्रि के दिन जलाभिषेक के साथ होगा।
कांवड़ यात्रा का इतिहास और पौराणिक महत्व
कांवड़ यात्रा की परंपरा सदियों पुरानी है। कुछ विद्वानों का मानना है कि त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की नींव रखी थी। कथा के अनुसार अपने अंधे माता-पिता की तीर्थ यात्रा की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने उन्हें कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार लाया और गंगा स्नान कराया। लौटते समय वे साथ में गंगाजल भी ले गए, जिससे यह परंपरा शुरू हुई।
भगवान राम और बाबाधाम की यात्रा
एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम ने भी कांवड़ यात्रा की थी। कहा जाता है कि उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। इसे भी कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।
कांवड़ यात्रा की पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ
(पहली कथा: समुद्र मंथन)
सबसे प्रचलित कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। माना जाता है कि जब समुद्र मंथन से हलाहल विष निकला था, तो भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए उस विष का पान कर लिया था। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है। विष के तीव्र प्रभाव को शांत करने के लिए, सभी देवी-देवताओं ने उन पर जल अर्पित किया। इसी घटना को आधार मानकर, सावन के महीने में शिव पर जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
(दूसरी कथा: परशुराम)
एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की थी। कहा जाता है कि उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर बागपत के पुरा महादेव में भगवान शिव का अभिषेक किया था।
(तीसरी कथा: रावण)
कुछ लोग लंकापति रावण को भी कांवड़ यात्रा का जनक मानते हैं। शिव के परम भक्त रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ में जल भरकर चढ़ाया था।
कांवड़ यात्रा का महत्व और संदेश
कांवड़ यात्रा केवल जल चढ़ाने तक सीमित नहीं है। इसका एक गहरा आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व है।
(आध्यात्मिक महत्व)
- तपस्या और त्याग: यह यात्रा शारीरिक और मानसिक तपस्या का प्रतीक है। भीषण गर्मी, बारिश, और लंबी दूरी तय करना भक्तों की दृढ़ इच्छाशक्ति और भगवान के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।
- मन की शुद्धि: पैदल चलकर, सांसारिक मोहमाया से दूर, भक्त अपने मन को शुद्ध करते हैं और भगवान से सीधा जुड़ने का प्रयास करते हैं।
- पुण्य की प्राप्ति: ऐसा माना जाता है कि कांवड़ यात्रा से किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
(सामाजिक महत्व)
- सामुदायिक भावना: इस यात्रा में अद्भुत सामुदायिक भावना देखने को मिलती है। विभिन्न धर्मार्थ संगठन, स्थानीय लोग और स्वयंसेवक कांवड़ियों के लिए भोजन, पानी, चिकित्सा और आराम की व्यवस्था करते हैं।
- एकता का प्रतीक: अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों से आए भक्त एक ही लक्ष्य के लिए साथ चलते हैं, जो भारत की विविधता में एकता को दर्शाता है।
- सहनशीलता और धैर्य: यह यात्रा भक्तों को सहनशीलता, धैर्य और निस्वार्थ सेवा का पाठ पढ़ाती है।
ये यात्रा सिर्फ़ आस्था का प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्य को भीतर से मजबूत बनाता है और उसे आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
सुरक्षा और चुनौतियाँ
बेशक, यह यात्रा आस्था का महापर्व है, लेकिन इसमें कुछ चुनौतियाँ भी होती हैं। इतनी बड़ी संख्या में भक्तों के सड़कों पर आने से सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखना एक बड़ा काम होता है। प्रशासन और पुलिसकर्मी इस यात्रा को सुचारू रूप से चलाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। सड़कें सुरक्षित हों, चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध हों, और किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना न हो, इसका पूरा ध्यान रखा जाता है।
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