सिंहस्थ कुम्भ उज्जैन का ज्योतिषीय महत्व

पुराणों में कहा गया है:

“मेषराशिगते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पतौ।
उज्जयिन्यां भवेत्कुम्भः सर्वसौख्य विवर्धनः।।”

अर्थात्, जब सूर्य मेष राशि में हो और गुरू सिंह राशि में हों, तब प्राचीन अवंतिका, जिसे उज्जयिनी या उज्जैन कहते हैं, में कुंभ महापर्व का आयोजन होता है। यह महापर्व बारह वर्षों के बाद मनाया जाता है।

वास्तव में, सिंहस्थ कुम्भ महापर्व उज्जैन का महान धार्मिक पर्व है। इस महान शुभ अवसर पर पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान की तिथियाँ चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारम्भ होती है। यह एक मास तक चलती है और वैशाख पूर्णिमा के अंतिम स्नान तक, विभिन्न तिथियों में संपन्न होती है।

साधु-संतों का एकत्र होना, सर्वत्र पावन स्वरों का गुंजन, शब्द और स्वर-शक्ति का आत्मिक प्रभाव यहां प्राणी मात्र को अलौकिक शान्ति प्रदान करता है। इससे सिंहस्थ कुम्भ महापर्व के अवसर पर उज्जैन का धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व स्वयं ही कई गुना बढ़ जाता है।

मान्यता है कि सिंहस्थ कुम्भ के इस पावन अवसर पर जो श्रद्धालु पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान की डुबकी लगाते है, उनके सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और वह मोक्ष प्राप्ति के योग्य हो जाता है।

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