सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन अमावस्या तक चलने वाला यह पर्व सोलह श्राद्ध, महालय पक्ष या अपर पक्ष के नाम से भी जाना जाता है।
भगवदगीता (अध्याय 9, श्लोक 25) में स्पष्ट कहा गया है –
“पितरों का पूजन करने वाला पितृलोक प्राप्त करता है, देवताओं की पूजा करने वाला देवलोक और परमात्मा की पूजा करने वाला परमात्मा को प्राप्त करता है।”
पितरों का स्मरण : भावनात्मक और आध्यात्मिक कर्तव्य
हिंदू मान्यता के अनुसार, पितर पक्ष में किए गए तर्पण, पिंडदान और दान से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और वंश पर कृपा करते हैं। भगवद्गीता (अध्याय 9, श्लोक 25) में भी स्पष्ट उल्लेख है कि पितरों की पूजा करने वाला पितृलोक प्राप्त करता है, देवताओं की पूजा करने वाला देवलोक और परमात्मा की पूजा करने वाला परमात्मा को।
कथा : ऋषि रूचि और पितरों का आह्वान
मार्कण्डेय पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, रूचि नामक ब्रह्मचारी चालीस वर्ष तक साधना करते रहे। तभी उनके चार पितर प्रकट हुए, जो शास्त्रविरुद्ध आचरण के कारण पितृलोक में कष्ट भोग रहे थे। उन्होंने रूचि से विवाह कर श्राद्ध करने का आग्रह किया। प्रारंभ में रूचि ने मना किया, परंतु पितरों ने समझाया कि वंश-धारा के कल्याण और आत्माओं की शांति के लिए श्राद्ध आवश्यक है।
ऐतिहासिक संदर्भ
ऋग्वेद में पितरों का आह्वान करते हुए उनसे धन, बल और समृद्धि की प्रार्थना की गई है। पितरों को वर, अवर और मध्यम श्रेणियों में बांटा गया, जो मृत्यु के क्रम और कर्म के आधार पर माने जाते हैं। अग्नि को मृतात्माओं को पितृलोक तक पहुंचाने वाला दूत कहा गया है।
पितृ पक्ष 2025 की शुरुआत और समापन
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा तिथि 7 सितंबर 2025 को देर रात 1:41 बजे आरंभ होकर उसी दिन रात 11:38 बजे समाप्त होगी।
इसी कारण पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025 से मानी जाएगी और इसका समापन 21 सितंबर 2025 (सर्वपितृ अमावस्या) को होगा।
- पूर्णिमा श्राद्ध – 7 सितंबर
- प्रतिपदा श्राद्ध – 8 सितंबर
- द्वितीया श्राद्ध – 9 सितंबर
- तृतीया व चतुर्थी श्राद्ध – 10 सितंबर
- महाभरणी (पंचमी) श्राद्ध – 11 सितंबर
- षष्ठी श्राद्ध – 12 सितंबर
- सप्तमी श्राद्ध – 13 सितंबर
- अष्टमी श्राद्ध – 14 सितंबर
- नवमी (मातृ नवमी) श्राद्ध – 15 सितंबर
- दशमी श्राद्ध – 16 सितंबर
- एकादशी श्राद्ध – 17 सितंबर
- द्वादशी (संन्यासी श्राद्ध) – 18 सितंबर
- त्रयोदशी (बालक श्राद्ध) – 19 सितंबर
- चतुर्दशी (अकाल मृत्यु श्राद्ध) – 20 सितंबर
- सर्वपितृ अमावस्या – 21 सितंबर
पितृ पक्ष की तीन खास तिथियां
- महाभरणी श्राद्ध (11 सितंबर) – अविवाहित और अकाल मृत्यु वाले पितरों के लिए किया जाने वाला विशेष श्राद्ध।
- नवमी श्राद्ध (15 सितंबर) – मातृ नवमी, खासतौर पर माताओं और महिला पूर्वजों के श्राद्ध के लिए महत्वपूर्ण।
- सर्वपितृ अमावस्या (21 सितंबर) – इस दिन ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है। इसे सबसे प्रमुख तिथि माना जाता है।
श्राद्ध की प्रमुख विधियां
- स्नान करके पवित्र वस्त्र धारण करें।
- कुशासन पर बैठकर पूर्वजों का स्मरण करें।
- तिल, जल और पिंड (चावल, जौ, तिल से बने) अर्पित करें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
- परिवार सहित पितरों के नाम का उच्चारण करके तर्पण करें।
दान का महत्व : कब क्या दान करें?
पितृ पक्ष में दान को अत्यंत फलदायी माना गया है। विद्वानों का कहना है कि दान से पितरों को शांति और अगले लोक की यात्रा में सहूलियत मिलती है।
दिनवार दान परंपरा:
- प्रतिपदा – तिल व गुड़ दान, खीर-चावल अर्पित करें।
- द्वितीया – वस्त्र दान, पुड़ी-चना-हलवा बनाएं।
- तृतीया – जौ व तिल दान, जौ की रोटी अर्पित करें।
- चतुर्थी – दूध व फल दान।
- पंचमी – भूमि दान, मूंग की खिचड़ी।
- षष्ठी – धान/चावल दान।
- सप्तमी – तांबे के बर्तन दान।
- अष्टमी – गुड़-तिल दान।
- नवमी – दक्षिणा दान।
- दशमी – दीपक व तेल दान।
- एकादशी – अनाज व फल दान।
- द्वादशी – नमक व दाल दान।
- त्रयोदशी – कंबल व वस्त्र दान।
- चतुर्दशी – घी व मिठाई दान।
- अमावस्या (सर्वपितृ मोक्ष) – अन्न, जल, वस्त्र, दक्षिणा का दान।
पितृ पूजन का लाभ
- पितर प्रसन्न होकर वंश पर कृपा करते हैं।
- परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- संतान को लंबी आयु और उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
- घर में आध्यात्मिक और नैतिक शक्ति बढ़ती है।