धर्म में सूर्यदेवता से जुड़े कई प्रमुख त्योहारों को मनाने की परंपरा है। उन्हीं में से एक है मकर संक्राति। आज मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा है। शीत ऋतु के पौस मास में जब भगवान भास्कर उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य की इस संक्रांति को मकर संक्राति के रूप में देश भर में मनाया जाता है। वैसे तो मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को मनाई जाती है, लेकिन पिछले कुछ साल से गणनाओं में आए कुछ परिवर्तन के कारण इसे 15 जनवरी को भी मनाया जाने लगा है। इस साल भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जा रही है।
पवित्र गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था।
मां गंगा पृथ्वी पर उतरीं और आगे राजा भगीरथ और पीछे-पीछे मां गंगा पृथ्वी पर बहने लगी. राजा भगीरथ मां गंगा को लेकर कपिल मुनि के आश्रम तक लेकर आए, जहां पर मां गंगा ने राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया. जिस दिन मां गंगा ने राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष दिया, उस दिन मकर संक्रांति थी. वहां से मां गंगा आगे जाकर सागर में मिल गईं. जहां वे मिलती हैं, वह जगह गंगा सागर के नाम से प्रसिद्ध है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति को गंगासागर या गंगा नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और पाप धुल जाता है.
भीष्म पितामाह ने चुना था देह त्याग के लिए मकर संक्रांति का दिन
मान्यता है कि इस अवसर पर दिया गया दान 100 गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं
मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में आने पर मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और देवलोक में दिन आरंभ होता है। हिंदू धर्म में ऐसे अनेक कारण बताए गए हैं जिनकी वजह से मकर संक्रांति का सभी 12 संक्रांतियों में विशेष महत्व है। श्रमद्भगवतगीता में भी मकर संक्रांति को बेहद शुभ बताया गया है।
मकर संक्रांति दान और स्नान का विशेष महत्व
शास्त्रों में मकर संक्रांति के दिन स्नान, ध्यान और दान का विशेष महत्व बताया गया है। पुराणों में मकर संक्रांति को देवताओं का दिन बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है।
मकर संक्रांति पौराणिक कथा
श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण के मुताबिक, शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था, इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था।
मकर संक्रांति और यमराज की तपस्या
पिता सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की। लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया। इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ठ भोगना पड़ रहा था। यमराज ने अपनी सौतली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया। तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे।
मकर राशि में हुआ सूर्य का प्रवेश
कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था। उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन धान्य से भर जाएगा। तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था। इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है। इसी समय से मकर संक्राति पर तिल से सूर्य एवं शनि की पूजा का नियम शुरू हुआ।
श्रीमद्भागवतगीता में भगवान कृष्ण ने बताया है मकर संक्रांति का महत्व
स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। (श्लोक-24-25)