शरद पूर्णिमा 2025 : 6 या 7 अक्टूबर ? जब चंद्रदेव बरसाएंगे अमृत, जानें पूजा विधि, कथा और खीर रखने का शुभ मुहूर्त

सोमवार को शरद पूर्णिमा पर चंद्रदेव अपनी 16 कलाओं से अमृत वर्षा करेंगे। इस रात खीर चांदनी में रखकर मां लक्ष्मी की पूजा करना अत्यंत शुभ माना गया है।

इस वर्ष शरद पूर्णिमा का पर्व 6 अक्टूबर 2025, सोमवार के दिन मनाया जाएगा। विशेष बात यह है कि यह सोमवार को पड़ रही है — जो स्वयं चंद्रदेव का दिन माना जाता है। अतः इस बार शरद पूर्णिमा का योग अत्यंत शुभ और फलदायक रहेगा।

इस दिन चंद्रोदय शाम 5:27 बजे होगा, जबकि भद्रा का साया रात 10:53 बजे समाप्त होगा। खीर रखने का सबसे शुभ समय रात 10:53 से मध्यरात्रि 12:30 तक रहेगा।


शरद पूर्णिमा का महत्व

शरद पूर्णिमा को अमृत वर्षा की रात्रि कहा गया है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं के साथ धरती पर उतरते हैं और उनकी किरणों से अमृत टपकता है। यह रात्रि स्वास्थ्य, सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करने वाली होती है।

पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब 14 रत्न प्रकट हुए थे, उसी दिन मां लक्ष्मी का भी अवतरण हुआ था। इसलिए यह दिन लक्ष्मी पूजन के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।


शरद पूर्णिमा पूजा विधि (Puja Vidhi)

  1. प्रातः स्नान के बाद घर को शुद्ध करें और मंदिर में लाल या पीले वस्त्र बिछाएं।
  2. मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
  3. दीपक, धूप, पुष्प, फल और खीर का नैवेद्य अर्पित करें।
  4. “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का जप करें।
  5. रात्रि में चांदी या मिट्टी के बर्तन में खीर रखकर चांदनी में रखें।
  6. अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त के बाद उस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।

शरद पूर्णिमा और खीर का रहस्य

आयुर्वेद के अनुसार, इस रात चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होते हैं। चांदी के बर्तन में रखी खीर इन किरणों से ऊर्जा प्राप्त करती है, जिससे वह आरोग्य और सौभाग्य देने वाली बन जाती है।


पौराणिक कथा – शरद पूर्णिमा व्रत की महिमा

एक कथा के अनुसार, एक साहूकार की दो बेटियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। बड़ी बेटी श्रद्धा से व्रत करती थी जबकि छोटी अधूरा छोड़ देती थी। परिणामस्वरूप बड़ी को संतान सुख मिला और छोटी को नहीं।
जब उसने विधि-विधान से व्रत पूरा किया तो उसे संतान मिली, पर पूर्व अधूरे व्रत के दोष से बालक का निधन हो गया। बड़ी बहन के पुण्य प्रभाव से बालक पुनः जीवित हो गया। तब से पूर्णिमा व्रत की महिमा प्रसारित हुई।


भगवान श्रीकृष्ण और रास लीला का संबंध

शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस रात भगवान श्रीकृष्ण ने राधा रानी और गोपियों के साथ महारास रचाया था। चंद्रदेव उस दिव्य रास से प्रभावित होकर अमृत वर्षा करने लगे। इसी कारण इसे चंद्र अमृत वर्षा की रात्रि कहा जाता है।


इस दिन क्या करें और क्या न करें

  • सफेद या पीले वस्त्र धारण करें।
  • मांस, मछली, प्याज-लहसुन और तामसिक भोजन से परहेज करें।
  • शराब या नशीले पदार्थों का सेवन न करें।
  • रात में जागरण करें, भजन-कीर्तन करें और ध्यान लगाएं।

ज्योतिषीय दृष्टि से शरद पूर्णिमा 2025

इस वर्ष शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा मीन राशि में रहेगा। मीन राशि का चंद्रमा भावुकता, करुणा और कलात्मकता का प्रतीक है। यह पूर्णिमा मूलांक 2 वालों के लिए विशेष रूप से शुभ फल देने वाली होगी।

शरद पूर्णिमा वह रात है जब चंद्रदेव अपनी अमृतमय किरणों से जगत को आलोकित करते हैं। श्रद्धा और भक्ति से की गई पूजा, ध्यान और व्रत से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इस वर्ष 6 अक्टूबर की रात्रि मां लक्ष्मी की कृपा और चंद्रदेव के आशीर्वाद की वर्षा लेकर आएगी।
जय मां लक्ष्मी। जय श्रीकृष्ण। जय चंद्रदेव।