गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार महाराष्ट्र में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता हैं।
शिवपुराणमें भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्तिगणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है जबकि गणेशपुराणके मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गण + पति = गणपति। संस्कृतकोशानुसार ‘गण’ अर्थात पवित्रक। ‘पति’ अर्थात स्वामी, ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकोंके स्वामी।
वाराह पुराण एवं लिंग पुराण में वर्णन है कि एक बार ऋषि मुनियों ने असुरी शक्तियों से ग्रसित होकर देवाधिदेव भगवान शंकर से सहायता की प्रार्थना की। भगवान आशुतोष ने विनायक रूप से श्री गणेश को प्रगट किया और अपने शरीर को कंपित कर अनेक गणों की सृष्टि की, उनका अधिपति गणेश को नियुक्त किया गया। शास्त्रों में गणेश जी के स्वरूप का वर्णन करते हुए लिखा गया है-
वक्रतुंड महाकाय। सूर्यकोटि सम प्रभ।
निर्विघ्न कुरु मे देव। सर्व कार्येषु सर्वदा॥
अर्थात् जिनकी सूँड़ वक्र है, जिनका शरीर महाकाय है, जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, ऐसे सब कुछ प्रदान करने में सक्षम शक्तिमान गणेश जी सदैव मेरे विघ्न हरें।
व्रत
भाद्रपद-कृष्ण-चतुर्थी से प्रारंभ करके प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चंद्रोदयव्यापिनीचतुर्थी के दिन व्रत करने पर विघ्नेश्वरगणेश प्रसन्न होकर समस्त विघ्न और संकट दूर कर देते हैं।
चंद्र दर्शन दोष से बचाव
प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात् व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है।
जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-
सिहः प्रसेनम् अवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥