भारत में प्रत्येक त्योहार का अपना एक विशेष महत्व होता है, जिनमें अनंत चतुर्दशी का स्थान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से जीवन में सुख, समृद्धि और पापों से मुक्ति मिलती है।
‘अनंत’ का अर्थ है – जिसका अंत न हो। इस दिन व्रती एक विशेष पूजा-अर्चना कर भगवान विष्णु के ‘अनंत रूप’ की उपासना करते हैं। पूजा में शुद्ध जल से भरे कलश, शेषनाग के प्रतीक और चौदह गांठों वाले धागे का विशेष महत्व होता है। यह धागा कुमकुम, हल्दी और केसर से पूजित कर दाहिने हाथ में बांधा जाता है। इसे अनंत सूत्र कहा जाता है। माना जाता है कि इस धागे को श्रद्धा से धारण करने पर भगवान विष्णु का आशीर्वाद सदैव प्राप्त होता है।
अनंत चतुर्दशी का एक और विशेष पहलू यह है कि इस दिन गणेश विसर्जन भी किया जाता है। गणेशोत्सव के दसवें दिन अनंत चतुर्दशी के अवसर पर श्रद्धालु बड़े उत्साह और भक्ति के साथ गणपति बप्पा को विदा करते हैं। इस प्रकार यह पर्व भगवान विष्णु और भगवान गणेश दोनों की आराधना का प्रतीक बन जाता है।
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि इस व्रत का पालन करने से समस्त दुख दूर होते हैं और घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। पुरुष और महिलाएं समान रूप से इस व्रत को कर सकते हैं। व्रती दिनभर उपवास रखते हैं, कथा सुनते हैं और सायंकाल आरती करके अनंत सूत्र धारण करते हैं।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय सत्य युग में राजा सुमंत नामक एक धर्मनिष्ठ राजा थे। उनकी पत्नी सुशील स्वभाव की थी, किन्तु संतान सुख से वंचित थी। बाद में उन्हें एक कन्या प्राप्त हुई जिसका नाम सुषिला रखा गया। विवाह के बाद सुषिला अपने पति संग ससुराल आई।
एक दिन नदी किनारे कुछ स्त्रियाँ अनंत चतुर्दशी का व्रत कर रही थीं। सुषिला ने उनसे इस व्रत का महत्व पूछा तो उन्होंने बताया कि यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे करने से सभी दुख दूर होते हैं तथा सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। सुषिला ने भी श्रद्धापूर्वक अनंत सूत्र धारण कर व्रत किया। परिणामस्वरूप उसके जीवन में समस्त सुखों की प्राप्ति हुई।
लेकिन उसके पति ने इस व्रत और अनंत सूत्र का अपमान किया और धागा उतार फेंका। इससे उन्हें विपत्तियों और दुखों का सामना करना पड़ा। बाद में अपनी गलती का एहसास होने पर उन्होंने और सुषिला ने पुनः श्रद्धा से यह व्रत किया और उन्हें सुख-समृद्धि प्राप्त हुई।
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि अनंत चतुर्दशी का व्रत सच्चे मन से करने पर जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
अनंत चतुर्दशी पूजा विधि
- सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा/चित्र स्थापित करें।
- एक कलश में शुद्ध जल भरकर उस पर नारियल, आम के पत्ते रखें।
- शेषनाग का प्रतीक बनाकर या चित्र रखकर पूजन करें।
- 14 गांठों वाला धागा (अनंत सूत्र) कुमकुम, हल्दी और केसर से पूजें।
- भगवान विष्णु को पंचामृत, फल, फूल, मिठाई और तुलसी पत्र अर्पित करें।
- व्रत कथा का श्रवण करें।
- पूजा के बाद अनंत सूत्र दाहिने हाथ में बांधें।
- दिनभर व्रत रखें और सायंकाल आरती करें।
- अगले दिन व्रत पूरा कर दान-दक्षिणा दें और भोजन ग्रहण करें।
इस प्रकार अनंत चतुर्दशी न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह हमें अनंत धैर्य, श्रद्धा और सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा भी देती है।