प्राचीन काल से तीर्थराज प्रयागराज, गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्थित है। यहां के तीर्थ पुरोहित सदियों से श्रद्धालुओं को मुक्ति का मार्ग दिखाते आ रहे हैं। इनकी पहचान ही प्रयागराज की पहचान है।
दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए यहां तीर्थ पुरोहितों से संपर्क करते हैं। तीर्थ पुरोहित पवित्र त्रिवेणी के जल में अस्थि विसर्जन से पहले सभी आवश्यक संस्कार संपन्न करते हैं।
झंडों का महत्व
इन तीर्थ पुरोहितों की एक अनूठी पहचान उनके झंडे हैं। ये झंडे न केवल उनकी विशिष्टता को दर्शाते हैं बल्कि श्रद्धालुओं को भी उन्हें आसानी से पहचानने में मदद करते हैं। इन झंडों पर विभिन्न प्रकार के चिन्ह बनाए जाते हैं जैसे हाथी, घोड़ा, मछली, कुल्हाड़ी, राधाकृष्ण, पान के पत्ते, कटार, नारियल, महल, और कई अन्य। प्रत्येक चिन्ह का अपना एक विशेष अर्थ होता है और ये चिन्ह पीढ़ी दर पीढ़ी प्रेषित किए जाते हैं।
चिह्नों का निर्धारण
ये चिन्ह प्रयागवाल समिति द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। प्रत्येक तीर्थ पुरोहित को एक विशिष्ट चिन्ह दिया जाता है जो उनकी पहचान बन जाता है। इन झंडों को बड़े-बड़े बांस पर लगाया जाता है ताकि दूर से ही दिखाई दें।
प्रयागराज के तीर्थ पुरोहितों के झंडे न केवल उनकी पहचान का प्रतीक हैं बल्कि उनकी परंपरा और इतिहास को भी दर्शाते हैं। ये झंडे श्रद्धालुओं के लिए एक आस्था का केंद्र भी हैं।