उत्तराखंड का अनोखा वंशी नारायण मंदिर: साल में सिर्फ रक्षाबंधन के दिन के लिए खुलते हैं कपाट

उपासना डेस्क, नॉएडा: उत्तराखंड के चमोली जिले की उर्गम घाटी में स्थित वंशी नारायण मंदिर एक ऐसा अद्भुत मंदिर है, जिसके कपाट साल में केवल एक दिन, यानी रक्षा बंधन के दिन ही खुलते हैं। यह मंदिर अपनी अनोखी परंपरा और पौराणिक कथाओं के लिए जाना जाता है।

पौराणिक कथा: जब नारद मुनि ने बताया माता लक्ष्मी को रास्ता
मान्यता है कि एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से उनके द्वारपाल बनने का आग्रह किया, जिसे भगवान ने स्वीकार कर लिया और वे पाताल लोक चले गए। जब कई दिनों तक भगवान विष्णु के दर्शन नहीं हुए, तो माता लक्ष्मी चिंतित होकर नारद मुनि के पास गईं।

नारद मुनि ने उन्हें बताया कि भगवान विष्णु राजा बलि के द्वारपाल बन गए हैं। उन्होंने माता लक्ष्मी को वापस लाने का उपाय भी सुझाया। उन्होंने कहा कि सावन मास की पूर्णिमा के दिन आप पाताल लोक जाएं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उनसे भगवान विष्णु को वापस मांग लें।

माता लक्ष्मी ने नारद मुनि से पाताल लोक का रास्ता पूछा और उनके साथ चलने का आग्रह किया। नारद मुनि ने उनका आग्रह स्वीकार किया और वे दोनों पाताल लोक गए। नारद मुनि की अनुपस्थिति में कलौठ गांव के जार पुजारियों ने वंशी नारायण की पूजा की, और तभी से यह परंपरा चली आ रही है।

रक्षा बंधन पर विशेष पूजा और उत्सव
यह मंदिर सिर्फ रक्षा बंधन के दिन ही आम श्रद्धालुओं के लिए खुलता है। इस दिन, कलौठ गांव के हर घर से भगवान नारायण के लिए मक्खन लाया जाता है, जिससे प्रसाद तैयार होता है। भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है और गांव के लोग उन्हें रक्षासूत्र बांधते हैं। इस दौरान, मंदिर के पास की फुलवारी में कई दुर्लभ प्रजाति के फूल खिलते हैं, जो इसकी सुंदरता को और बढ़ा देते हैं।

मंदिर की वास्तुकला और अन्य मूर्तियाँ

कत्यूरी शैली में बना यह मंदिर लगभग 10 फीट ऊंचा है। इसका गर्भगृह वर्गाकार है, जिसमें भगवान विष्णु चतुर्भुज रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां की प्रतिमा में भगवान विष्णु और भगवान शिव, दोनों के ही दर्शन होते हैं। इसके अलावा, मंदिर में भगवान गणेश और वन देवियों की मूर्तियां भी मौजूद हैं। इस मंदिर के पुजारी ठाकुर जाति के होते हैं।