चिंतापूर्णी मंदिर के विकास के लिए 56.26 करोड़ रुपये मंजूर: गजेंद्र सिंह शेखावत
कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश): केन्द्रीय पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने राज्यसभा सांसद इंदु बाला गोस्वामी के सवाल पर सदन में कि केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए स्वदेश दर्शन योजना के अन्तर्गत राज्य सरकारों और केन्द्र शासित राज्यों को पर्यटन ढांचा विकसित करने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है। उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश में पर्यटन ढांचा सुदृड़ करने के लिए वर्ष 2024 -25 के दौरान स्वदेश दर्शन दो योजना के अन्तर्गत माता चिन्तपूर्णी देवी मन्दिर के विकास कार्यों के विकास के लिए 56.26 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की है।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2024 -25 के दौरान स्वदेश दर्शन दो योजना के अन्तर्गत चैलेंज बेस्ड डेस्टिनेशन डेवलपमेंट के अन्तर्गत लाहौल स्पीति जिला के उपमण्डल काज़ा में पर्यटन ढांचा विकसित करने के लिए 24.82 करोड़ रूपये स्वीकृत किये गए हैं जबकी रकछम-छितकुल में पर्यटन ढांचा विकसित करने के लिए 4.96 करोड़ रूपये स्वीकृत किये गए हैं। उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश में पर्यटन ढांचा सुदृड़ करने के लिए वर्ष 2016-17 के दौरान स्वदेश दर्शन योजना के अन्तर्गत कियारीघाट, शिमला, हाटकोटी, मनाली, काँगड़ा, धर्मशाला, बीड़, पालमपुर, चम्बा हिमालयन सर्किट विकसित करने के लिए 68.34 करोड़ रूपये रूपये स्वीकृत किये हैं।
हिन्दू धर्म में, देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता है और उनके विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। भारत के हर कोने में देवी के अनेक मंदिर स्थापित हैं, जिनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण और चमत्कारी स्थान है हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित माता चिंतपूर्णी देवी मंदिर। यह मंदिर न केवल एक पवित्र तीर्थस्थल है, बल्कि भक्तों के लिए आस्था और विश्वास का केंद्र भी है।
मंदिर का इतिहास और महत्व
चिंतपूर्णी मंदिर, देवी सती के शक्ति पीठों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव देवी सती के जले हुए शरीर को लेकर ब्रह्मांड में घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर को 51 टुकड़ों में विभाजित कर दिया था। कहा जाता है कि जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। मान्यता है कि चिंतपूर्णी में देवी सती के ‘चरण’ गिरे थे, जिसके कारण यह स्थान एक महाशक्ति पीठ के रूप में जाना जाता है।
मंदिर में देवी की पूजा ‘छिन्नमस्तिका’ रूप में की जाती है। छिन्नमस्तिका का अर्थ है ‘कटा हुआ सिर’। इस रूप में देवी अपने भक्तों के सभी दुखों और चिंताओं को दूर करती हैं। ‘चिंतपूर्णी’ नाम भी इसी से आया है, जहां ‘चिंत’ का अर्थ है चिंता और ‘पूर्णी’ का अर्थ है पूरी करने वाली। देवी के इस रूप में एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है, जिससे रक्त की धारा बह रही है। यह रूप जीवन और मृत्यु के चक्र को दर्शाता है और भक्तों को मोक्ष का मार्ग दिखाता है।
मंदिर का अद्भुत वातावरण
चिंतपूर्णी मंदिर हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत पहाड़ियों में बसा हुआ है। मंदिर के चारों ओर की प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण भक्तों को एक अलौकिक अनुभव प्रदान करता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को एक छोटी पहाड़ी पर चढ़ना पड़ता है, जो उनके आध्यात्मिक अनुभव को और भी गहरा बनाता है। मंदिर का मुख्य द्वार भव्य है और अंदर का गर्भगृह अत्यंत पवित्र माना जाता है।
मंदिर के परिसर में एक पवित्र ‘चिंताहरण कुंड’ भी है, जिसके जल को बहुत ही शुद्ध और रोगनाशक माना जाता है। भक्तगण इस कुंड में स्नान करते हैं और देवी से अपनी चिंताओं को दूर करने की प्रार्थना करते हैं।
प्रमुख त्यौहार और मेला
चिंतपूर्णी मंदिर में साल भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्रों के दौरान यहां का माहौल एक अलग ही होता है। चैत्र और शारदीय नवरात्रों में यहां विशाल मेलों का आयोजन किया जाता है। इन मेलों में दूर-दूर से भक्तगण पैदल यात्रा करके आते हैं और देवी माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दौरान मंदिर को फूलों और रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है, जो एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है।