भारतीय शोधकर्ताओं ने बिना सर्जरी मस्तिष्क कोशिकाओं को उत्तेजित करने वाला नैनोमटेरियल विकसित किया

भारतीय वैज्ञानिकों ने g-C₃N₄ नैनोमटेरियल से मस्तिष्क कोशिकाओं को बिना सर्जरी उत्तेजित करने की क्रांतिकारी खोज की है। यह तकनीक पार्किंसंस और अल्ज़ाइमर जैसी बीमारियों के इलाज और भविष्य की ब्रेनवेयर कंप्यूटिंग के लिए नई राह खोलती है।

भारत के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी खोज की है, जो मस्तिष्क संबंधी बीमारियों के उपचार में बड़ा बदलाव ला सकती है। नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (INST), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के शोधकर्ताओं ने ग्राफिटिक कार्बन नाइट्राइड (g-C₃N₄) नामक नैनोमटेरियल तैयार किया है, जो बिना किसी सर्जरी या बाहरी उपकरण के सीधे मस्तिष्क कोशिकाओं को उत्तेजित करने में सक्षम है।

आमतौर पर, डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS) जैसी तकनीकों के लिए सर्जिकल इम्प्लांट या चुंबकीय/अल्ट्रासाउंड तरंगों की आवश्यकता होती है। लेकिन g-C₃N₄ मस्तिष्क के प्राकृतिक विद्युत संकेतों का उपयोग करते हुए न्यूरॉन्स को सक्रिय करता है और उनके बीच बेहतर कनेक्शन बनाता है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि यह नैनोमटेरियल न्यूरॉन्स में कैल्शियम चैनल खोलकर उनकी वृद्धि और परिपक्वता को बढ़ावा देता है। प्रयोगशाला में विकसित मस्तिष्क कोशिकाओं पर किए गए परीक्षणों में इसने डोपामाइन उत्पादन को बढ़ाया और पशु मॉडलों में पार्किंसंस रोग से जुड़े विषाक्त प्रोटीन को कम किया।

शोध का नेतृत्व करने वाले डॉ. मनीष सिंह के अनुसार, यह पहली बार है जब किसी अर्धचालक नैनोमटेरियल ने बिना किसी बाहरी उत्तेजना के न्यूरॉन्स को सीधे नियंत्रित करने की क्षमता दिखाई है। उन्होंने कहा, “यह न्यूरोमॉड्यूलेशन अनुसंधान में एक बड़ा बदलाव है। पार्किंसंस और अल्ज़ाइमर जैसी बीमारियों के इलाज के लिए यह नई उम्मीद जगाता है।”

इसके अलावा, विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक भविष्य की ब्रेनवेयर कंप्यूटिंग और बायो-प्रेरित कंप्यूटिंग को भी अधिक प्रभावी बना सकती है। वर्तमान में, शोधकर्ताओं द्वारा प्रयोगशाला में विकसित छोटे मस्तिष्क ऊतक (ब्रेन ऑर्गेनॉइड्स) को जैविक प्रोसेसर के रूप में परखा जा रहा है। g-C₃N₄ जैसे नैनोमटेरियल इन्हें और अधिक उन्नत बना सकते हैं।

हालांकि, मानव अनुप्रयोगों से पहले और अधिक प्रीक्लिनिकल एवं क्लिनिकल परीक्षण आवश्यक होंगे। फिर भी, विशेषज्ञ मानते हैं कि यह खोज भविष्य में अल्ज़ाइमर, पार्किंसंस और मस्तिष्क की चोटों के इलाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है।