सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। इस वर्ष पितृ पक्ष 7 सितंबर से 21 सितंबर तक मनाया जाएगा। शास्त्रों में कहा गया है कि इस अवधि में किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।
कौओं को भोजन कराना इस काल की सबसे प्रमुख परंपरा मानी जाती है क्योंकि विश्वास है कि पितर कौए का रूप धारण करके पृथ्वी पर आते हैं। उन्हें अर्पित अन्न, जल और पकवान कौओं के माध्यम से पितरों तक पहुँचता है।
पौराणिक कथा – कौए का महत्व कैसे हुआ?
त्रेतायुग में इन्द्र पुत्र जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के चरणों पर चोंच मारी थी। तब भगवान श्रीराम ने उसे तिनके से बने बाण से दंडित किया। क्षमा मांगने पर भगवान राम ने उसे वरदान दिया कि श्राद्ध में कौओं को अर्पित भोजन पितरों तक पहुँचेगा। तभी से यह परंपरा शुरू हुई और आज तक चल रही है।
कौए का धार्मिक रहस्य
पुराणों के अनुसार कौआ अमृत का रस चखने के कारण कभी स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। यह पक्षी भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास कर लेता है। श्राद्ध पक्ष में कौए को भोजन कराना पितरों की आत्मा की तृप्ति का प्रतीक है।
भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक 16 दिन श्राद्ध पक्ष कहलाते हैं। इन दिनों घर की छत पर कौए का आगमन शुभ माना जाता है। पीपल के पेड़ और कौआ – दोनों को पितरों का प्रतीक माना गया है।
कौए से जुड़े शकुन और अपशकुन
- शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए कौए को भोजन कराना चाहिए।
- यदि घर की मुंडेर पर कौआ बोलता है तो अतिथि के आगमन का संकेत है।
- उत्तर दिशा से कौए की आवाज़ लक्ष्मी कृपा का सूचक है।
- पश्चिम दिशा से बोलना मेहमान आने का संकेत है।
- पूर्व दिशा से आवाज़ शुभ समाचार लाती है।
- दक्षिण दिशा से बोलना अशुभ समाचार का द्योतक है।
पितृ पक्ष में कौओं को भोजन कराना न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए भी आवश्यक है। यह परंपरा पितरों और वंशजों के बीच संबंध को मज़बूत करती है। साथ ही यह हमें प्रकृति और जीवों के साथ सह-अस्तित्व का संदेश भी देती है।