सनातन संस्कृति में पैर छूने (दंडवत प्रणाम) केवल शिष्टाचार या आदर का भाव नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे धार्मिक और सामाजिक नियम भी हैं। शास्त्रों और परंपराओं में स्पष्ट कहा गया है कि हर किसी के पैर छूना उचित नहीं होता।
कब पैर छूना चाहिए
संत, गुरु और ऋषि-मुनि – ज्ञान और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए।
माता-पिता और बड़े-बुजुर्ग – उनके आशीर्वाद से आयु, धन और यश की वृद्धि मानी जाती है।
छोटी कन्याएं और बालक – इन्हें देवी-देवता का रूप माना गया है, इनके चरण स्पर्श करने से पुण्य मिलता है।
त्योहार या शुभ अवसरों पर – जैसे विवाह, जन्मदिन, पूजा या किसी नए कार्य की शुरुआत।
कब पैर नहीं छूना चाहिए
कुंवारी कन्या – उन्हें किसी के पैर नहीं छूना चाहिए, और यदि कोई कन्या पैर छूने का प्रयास करे तो रोकना चाहिए।
बेटियां – पिता के पैर नहीं छूना चाहिए, क्योंकि बेटियां देवी स्वरूप मानी जाती हैं।
बहुएं – केवल सास के पैर छू सकती हैं, श्वसुर के नहीं (कई समाजों में यही नियम है)।
मंदिर में भगवान से पहले किसी के पैर छूना – यह भगवान का अपमान माना जाता है।
पूजा कर रहे व्यक्ति – पूजा के समय बाधा डालना अशुभ है।
सोये हुए व्यक्ति – सोते समय चरण स्पर्श करना अशुभ और आयु घटाने वाला माना गया है।
श्मशान से लौटे व्यक्ति – स्नान से पूर्व उनके पैर नहीं छूने चाहिए।
अशुद्ध स्थिति – जैसे स्नान न किया हो, मासिक धर्म, अंतिम संस्कार के बाद आदि।
भांजा/भांजी – मामा-मामी के पैर नहीं छूना चाहिए।
पति-पत्नी – पति को पत्नी के पैर नहीं छूना चाहिए।
पैर छूना केवल एक अनुष्ठानिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि धर्म, मर्यादा और पवित्रता से जुड़ा हुआ नियम है। सही व्यक्ति और सही समय पर ही चरण स्पर्श करने से आशीर्वाद और पुण्य मिलता है, अन्यथा यह पाप और अशुभ फलदायी हो सकता है।