हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक पितृ पक्ष मनाया जाता है। यह कालखंड पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनके प्रति आभार प्रकट करने का होता है। आमतौर पर श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान पुरुषों द्वारा किए जाते हैं। लेकिन कई बार यह प्रश्न उठता है कि क्या महिलाएं भी श्राद्ध कर्म करने की अधिकारी हैं?
धार्मिक ग्रंथों में इसका उत्तर “हाँ” है। विद्वानों के अनुसार यदि किसी परिवार में पुत्र न हो, पुरुष सदस्य दूर हों या उपस्थित न हों, तो महिलाएं भी विधि-विधान से तर्पण और पिंडदान कर सकती हैं।
धार्मिक प्रमाण
माता सीता का उदाहरण
वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि जब भगवान राम और लक्ष्मण दशरथ जी के श्राद्ध की सामग्री लेने गए और लौटने में विलंब हुआ, तब माता सीता ने स्वयं फाल्गू नदी के तट पर वटवृक्ष, गाय और केतकी पुष्प को साक्षी मानकर पिंडदान किया। दशरथ जी की आत्मा प्रकट होकर प्रसन्न हुई और सीता जी को आशीर्वाद दिया।
गरुड़ पुराण का उल्लेख
पुत्राभावे वधु कूर्यात, भार्याभावे च सोदनः।
शिष्यों वा ब्राम्हणः सपिण्डो वा समाचरेत।।
ज्येष्ठस्य वा कनिष्ठस्य भ्रातृः पुत्रश्चः पौत्रके।
श्राध्यामात्रदिकम कार्य पुत्रहीनेत खगः।।
इसका भावार्थ है कि सबसे बड़े अथवा सबसे छोटे बेटे या बेटी के अभाव में पत्नी या बहू द्वारा भी श्राद्ध किया जा सकता है। लेकिन पत्नी जीवित नहीं हो तो सगा भाई, भतीजा, भांजा भी श्राद्ध कर सकता है। वहीं इनमें से कोई भी नहीं हो तो किसी शिष्य, मित्र या रिश्तेदार द्वारा भी श्राद्ध किया जा सकता है।
गरुड़ पुराण के इस श्लोक से यह स्पष्ट होता है कि, महिलाओं के पास भी श्राद्ध या पिंडदान करने का अधिकार है। लेकिन इसके लिए कुछ विशेष परिस्थितियां भी बताई गई हैं। लेकिन तर्पण या श्राद्ध के लिए पहले पुरुष को ही वरीयता दी जाती है।
विद्वानों का मत
ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि श्राद्ध कर्म रोकना अशुभ माना जाता है। अतः किसी भी परिस्थिति में पूर्वजों का तर्पण, पिंडदान या श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। यदि घर में पुरुष न हों, तो महिलाओं को यह अधिकार है कि वे स्वयं पूर्वजों का श्राद्ध करें।
श्राद्ध की सरल विधि
- सफेद वस्त्र धारण करें।
- जौ के आटे या खोये से पिंड बनाएं।
- चावल, तिल, दही, फूल और चंदन से पूजा करें।
- पितरों की मोक्ष प्राप्ति की प्रार्थना करें।
- दोपहर में पिंड को जल में प्रवाहित करें।
परंपरागत रूप से श्राद्ध पुरुषों का कर्तव्य माना गया है, लेकिन धार्मिक शास्त्रों के अनुसार विशेष परिस्थितियों में महिलाएं भी तर्पण और पिंडदान करने की पूर्ण अधिकारी हैं। माता सीता इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।