शंकरगढ़ राजघराने में 34 पीढ़ियों से चली आ रही दशहरा परंपरा आज भी बरकरार

प्रयागराज के शंकरगढ़ राजघराने में दशहरे पर नजराना पेश करने की 34 पीढ़ियों पुरानी परंपरा आज भी जीवित है। हर साल महाराजा महेन्द्र प्रताप सिंह राजसी परिधान में दरबार लगाते हैं, प्रजा दर्शन करती है और वैदिक विधि से शस्त्र पूजन के बाद जनता अपने राजा को पारंपरिक नजराना अर्पित करती है।

प्रयागराज के यमुनापार तहसील बारा क्षेत्र में स्थित शंकरगढ़ (कसौटा) राजघराना आज भी अपनी 34 पीढ़ियों पुरानी परंपराओं को जीवित रखे हुए है। हर साल दशहरे के अवसर पर यहां भव्य नजराना समारोह आयोजित किया जाता है, जिसमें हजारों ग्रामीण और प्रजाजन शामिल होते हैं।


रीवा राजघराने से जुड़ा गौरवशाली इतिहास

शंकरगढ़ का पुराना नाम कसौटा था, और यह रीवा राजघराने का पट्टीदार परिवार माना जाता है। यह क्षेत्र पहले विंध्य प्रदेश का हिस्सा था, जिसकी राजधानी रीवा थी। 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश के गठन के साथ यह इलाका उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में सम्मिलित हुआ।

शंकरगढ़ के राजपरिवार बघेल राजपूत वंश से आते हैं — जो महाराजा व्याघ्रदेव के वंशज हैं। यही वह वंश है, जिसने आगे चलकर बघेल राजपूतों की पहचान बनाई। कहा जाता है कि 36 पीढ़ियों पहले राजा कंधारदेव को शंकरगढ़ (कसौटा) के 365 गांव उत्तराधिकार में मिले थे, जिन्होंने टोंस नदी के किनारे देवरा गांव में अपना राज्य स्थापित किया।


दशहरा परंपरा — आज भी वही शाही रौनक

हर वर्ष दशहरे के दिन महाराजा महेन्द्र प्रताप सिंह, जो शंकरगढ़ के वर्तमान (34वें) राजा हैं, राजसी पोशाक में राज सिंहासन पर विराजमान होते हैं।
उनके पुत्र युवराज शिवेन्द्र प्रताप सिंह 35वीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि उनके पुत्र व्यंबकेश्वर प्रताप सिंह (भंवर साहब) 36वीं पीढ़ी के उत्तराधिकारी हैं।

इस अवसर पर शंकरगढ़ राजमहल में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ समारोह की शुरुआत होती है। महाराजा अपने कुलदेवता और पूर्वजों की पूजा करते हैं और शस्त्र पूजन संपन्न करते हैं। इसके बाद राजदरबार आम जनता के लिए खुल जाता है।


प्रजा करती है अपने राजा का अभिवादन

शंकरगढ़ (कसौटा) के ग्रामीण आज भी अपने राजा को उसी श्रद्धा से मानते हैं, जैसे वर्षों पहले उनके पूर्वज करते थे। दशहरे के दिन लोग दूर-दूर से आकर महाराजा के दर्शन करते हैं और नजराना पेश करते हैं।

समारोह में महाराजा महेन्द्र प्रताप सिंह का पारंपरिक उद्बोधन होता है, और राजदरबार में श्रद्धा और उत्सव का माहौल छा जाता है।


34 पीढ़ियों से जीवित एक परंपरा

आधुनिक युग में जहां राजशाही केवल इतिहास की बात रह गई है, वहीं शंकरगढ़ राजघराना अपने गौरवशाली अतीत को आज भी जीवित संस्कृति और लोक परंपरा के रूप में निभा रहा है।

यह परंपरा न सिर्फ क्षेत्र की पहचान बन गई है, बल्कि यह राजा-प्रजा के अटूट संबंध और भारतीय विरासत की झलक भी पेश करती है।