भारत में मोटापा बच्चों के लिए तेजी से एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बनकर उभर रहा है। यूनिसेफ (UNICEF) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, यदि मौजूदा रुझान जारी रहे तो वर्ष 2030 तक भारत में करीब 2 करोड़ 70 लाख (27 मिलियन) बच्चे मोटापे से ग्रसित हो सकते हैं।
वैश्विक परिदृश्य
रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर में 5 से 19 वर्ष आयु वर्ग के करीब 9.4% बच्चे मोटापे की चपेट में हैं। यह संख्या लगभग 18 करोड़ (180 मिलियन) है।
साल 2000 में यह आंकड़ा सिर्फ 3% था, जो अब तीन गुना से भी अधिक हो गया है।
दिलचस्प बात यह है कि मोटापे के साथ-साथ 9.2% बच्चे अंडरवेट यानी कुपोषण का भी सामना कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि कई देश मोटापा और कुपोषण – दोनों चुनौतियों से एक साथ जूझ रहे हैं।
भारत और दक्षिण एशिया में तेजी से बढ़ती समस्या
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका में 21% बच्चे मोटापे से पीड़ित हैं, लेकिन भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में भी यह अंतर धीरे-धीरे घट रहा है।
भारत में बदलती जीवनशैली, फास्ट फूड की बढ़ती खपत, शारीरिक गतिविधियों की कमी और स्क्रीन टाइम में बढ़ोतरी इसके प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनी
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो यह स्थिति आने वाले वर्षों में जन स्वास्थ्य संकट का रूप ले सकती है।
यूनिसेफ ने आगाह किया है कि मोटापा सिर्फ बच्चों के स्वास्थ्य को ही प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि भविष्य में हृदय रोग, डायबिटीज़ और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा भी बढ़ा सकता है।
समाधान की दिशा
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार –
- बच्चों को संतुलित आहार देना,
- खेलकूद और व्यायाम को दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना,
- फास्ट फूड और मीठे पेय पदार्थों पर नियंत्रण रखना,
- तथा माता-पिता और स्कूलों की सक्रिय भूमिका – मोटापा नियंत्रण में अहम कदम साबित हो सकते हैं।




